Jai Sri Ganesha,
भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम् वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते
यस्याद्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः सर्व
शंखेन्द्वाभमतीवसुन्दरतनुं शार्दूलचर्माम्बरं कालव्यालकरालभूषणधरं गंगाशशांकप्रियम् काशीशं कलिकल्मषौघशमनं कल्याणकल्पद्रुमं नौमीड्यं गिरिजापतिं गुणनिधिं कन्दर्पहं शङ्करम्
यो ददाति सतां शम्भुः कैवल्यमपि दुर्लभम्
खलानां दण्डकृद्योऽसौ शङ्करः शं तनोतु मे
कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्
कारुणीककलकञ्जलोचनं नौमि शंकरमनंगमोचनम्
पञ्च मूर्ति भगवान् शिव
इशान
तत्पुरुष
आघोर
वामदेव
सधोजात
ॐ शर्व भव रूद्र उग्र भीम पशुपतिये इशान महादेव नमः
ॐ अष्ट मूर्ती शिव शंकराय नमो नमः
ॐ सूर्ये मुर्तिये नमः
ॐ चन्द्रमुर्तिये नमः
ॐ पृथ्वीमुर्तिये नमः
ॐ जलमुर्तिये नमः
ॐ वहिममुर्तिये नमः
ॐ वायुमुर्तिये नमः
ॐ आकाशमुर्तिये नमः
ॐ यजमानमुर्तिये नमः
नमामि तात शंकरं
सुरभ्य चन्द्र शेखरं
नमः उमा महेश्वरम
स्वभक्त कल्प पादपं
नमामि प्रेम मंगलम
जगत गुरु च शाश्वतं
वन्दे देवा उमा पति
सुर गुरु वन्दे जगत कारणं
वन्दे पनंग भूषणं
मृगं धरम पशुनां पतिम
वन्दे सूर्य शशांक वहिन्यं
वन्दे मुकुंद शिवम्
वन्दे भक्त जनाशयम च वरंद वन्दे शिव शंकरं
भगवान् शिव के पांच कृत्य
सृष्टि
स्तिथि
संहार
तिरोभाव
अनुग्रह
ॐ नमः शिवायः
शिव सामीप्य_
बाल चन्द्र
जटा
त्रिपुंड
कुंडल
त्रिशूल
सर्प
श्री श्री गंगा जी
शिव सारुप्य
श्री श्री गणेश जी
स्वामी कार्तिकेय
श्री श्री गौरी जी
शिव सानिग्द
भगवान् नंदिश्वेर
शिव सालोक्य
संत महात्मा
ऋषि मुनि
दिव्य आत्मा
शिव भक्त
शिव केवलं
सत्य
--------------
आत्मतत्वाय नम स्वाहा
विद्यातत्वाय नम स्वाहा
शिवतत्वाय नम स्वाहा
--------------
शिव पूजा सहायक सूत्र
रुद्राक्ष
त्रिपुंड
पंचाक्षरी
----------
भक्ति वह तत्व है जो शिव को सर्वाधिक प्रभावित करता है
--------
सत्य वह प्रकाश है जिससे शिव दर्शन होता है
--------
शिव सत्य की परम सीमा है
--------
शिव सर्वज्ञ है
-------
शिव सर्वभूतात्मा है
---------
शिव अतुल्य है
-------
शिव भक्ति के नो अंग
श्रवण
कीर्तन
मनन
सेवन
दास्य भाव
अर्चन
वंदन
साख्या
आत्म नेवेदन
------
जीवन का आधार सत्य है
सत्य अनंत है
जीव का सत्य आत्मा
आत्मा का सत्य परमात्मा
-----------
सत्य स्वयं में परिपूर्ण होता है सत्य की सत्ता परिपूर्ण होती है
----------
सत्य ही परम ब्रह्म है
सत्य की महिमा अद्रितिय है
सत्य ही तप है
सत्य परम यज्ञ है
सत्य ही परम आदरणीय है
सत्य सदेव सजग रहता है
सत्य ही सोने वाले जीव में जगता है
सत्य परम पद है
ज्ञान में सत्य की हि सत्ता निहित है
धर्म में सत्य का मान ही प्रकाशित है
तीर्थ में सत्य का वास होता है
सत्य ही यज्ञ तप दान व् ब्रहचर्य है
सत्य के प्रभाव से सभी गृह अपनी धुरी तह करते है
सत्य ही ओमकार है
तुला के एक पलड़े में असख्य अश्मेघ यज्ञ का हल व् एक में सत्य -सत्य का पलड़ा सदा भरी रहता है
---------
शिव विद्या
एक - ब्रह्म एक है उसी की परिपूर्ण सत्ता है वही पूजनीय है
दो-जीव व् ब्रह्म, ब्रह्म परिपूर्ण है व् जीव की परिपूर्णता ब्रह्म से ही रचित है
तीन-ब्रह्म विष्णु महेश- त्रिदेव
सृष्टी पालन और संघार के कारण करनाये
सत रज तम-त्रिगुण
सुख दुःख व् मोक्ष की सीमा
चार-सत्य- दया- ताप- दान {धर्म के चार पद }
प्रगट धर्म के चार पद कलि मऊ एक प्रदान येन केन विधि दीन्हे दान कराही कल्याण
अर्थ धर्म काम मोक्ष
{मनुष्य जीवन के चार पथ }
पांच-पंच भूत-आकाश अग्नि वायु जल पृथ्वी
पंच भूतो के पाच गुण
शब्द दर्शन स्पर्श रस गंध
पंच कर्म इन्द्रिये
पंच ज्ञान इन्द्रिये
पंच मुखी भगवान् शिव
छह-छह मुखी भगवान् कार्तिकेय
सात- सात प्रकाश पिंड- गृह
सप्त सागर- सात दिन
सप्त धातु
आठ -अष्ट मुखी भगवान् शिव
आठो दिशाओं के अधिष्ठित देव
अष्टांग योग के कारण कारणाय
नो -नव शक्ति नव दुर्गा
नव गृह
भक्ति के नव अंग
शुन्य-पुन आरम्भ
---------
शिव स्वरोदन
निरंकार नित्य एवं आकार रहित परमात्मा से ही आकाश की उत्पत्ति हुई
आकाश से वायु का पदार्पण
वायु से तेज का अतार्थ अग्नि का
अग्नि से जल का
जल से धरा का अतार्थ पृथ्वी का
पञ्च की माया और शिव माया रचित पञ्च तत्व
पञ्च तत्व के पांच गुण
शब्द आकाश से
वायु से स्पर्श
तेज से दर्शन
जल से रस
पृथ्वी से गंध
आकाश का गुण मात्र शब्द
वायु का गुण शब्द व् स्पर्श
तेज का गुण शब्द स्पर्श व् दर्शन
जल का गुण शब्द स्पर्श दर्शन व् रस
पृथ्वी का गुण शब्द स्पर्श दर्शन रस व् गंध
पृथ्वी सर्व गुनी प्रकृति की जननी
प्रकृति से जीव की संज्ञा
जीव में मनुष्य का वाचस्व
मनुष्य
मनुष्य भगवान् का एक दिव्या रूप जो देवताओ को भी दुर्लभ
जीव साक्षात् शिव अंश
प्रकृति के गुणों से परिपूर्ण
पञ्च भूतो से बना शरीर,
पञ्च भूतो के पञ्च गुण
पांच कर्म इन्द्रिया
पांच ज्ञान इन्द्रिया
यह २० तत्व पृथ्वी जनित
तीन अलोकिक तत्व जो शिवमय गुणों से परिरूर्ण
सत- रज -तम
प्रतीकात्मक तीन स्वरुप_
मन बुद्धि व् गुणात्मक अहंकार
यह तीनो आत्मा के गुण कहे जाते है
२४ वा तत्व स्वयं आत्मा है
और २५ वा स्वयं परमात्मा
२५ तत्वों के ग़ठऩ से हुई जीव की संज्ञा
हां जीव और ब्रह्म संयुक्त है तो जीवन है
तीन शरीर में २५ का विभाजन
आत्मा तीन शरीरो से जकड़ी है
स्थूल शरीर -पञ्च भूत जनित
शुक्ष्म शरीर -इन्द्रियों के उपभोग हेतु
कारन शरीर -आत्मा का मूल केंद्र
इससे भी परे एक शरीर होता है जहा इश्वर का वास होता है यह शरीर सत्य से परिपूर्ण व् कारन शर्रेर के पास होता है
स्वयं से स्वयं की इच्छा कर प्रभु से घटना क्रम में जीव की रचना कर स्वयं ही मुक्त होते हुआ बंधन को रूप दिया
और बंधन से मुक्ति का भेद भी इसी जीव के भीतर सुनिश्चित किया, मन बुद्धि व् अहंकार के निग्रह से जीव स्वयं के सत स्वरुप तक पहुच सकता है
निज दर्शन के भेद में छुपा है ब्रह्म भेद
कर्म से देह- देह से कर्म, यही माया है
सासों की गति ही जीवन की संज्ञा है
सांस का आना जीवन है यही देह की क्रिया का मूल भी सत्य है कर्म और ज्ञान की रूप रेखा इसी स्वास की दूर से बंधी है यह स्वास सत्य व् असत्य के भेद से परिपूर्ण है स्वास का एक अंग पूर्णता चन्द्र प्रभावित है और दूसरा सूर्य प्रभावित चन्द्र गति व् सूर्य गति का भेद ही जीवन है
शिव के तीन नेत्र है सूर्य चन्द्र व् अग्नि
बाई स्वास चन्द्र गति -दाई स्वास सूर्य गति व् मद्य गति सुषिमं
चन्द्र गति शीतल
सूर्य गति तेज प्रद
व् सुषिमं परिवर्तक
एक गति काल १८० मिनट
चन्द्र गति मूल स्वरुप में पूर्ण मासी से आरंभ
सूर्य गति मूल रूप से अमावस्या से आरंभ पर कई भेदों के कारन गति का आरम्भ व् समय सीमा परिवर्तनिये हो सकती है
चन्द्रमा के स्वर में दिन का आरंभ हो व् सूर्य स्वर में अंत येही सुभ गति कारक है
सोम बुध गुरु व् शुक्र वार को चन्द्र गति{ इडा} परम लाभप्रद
रवि मंगल शनि को सूर्य गति{ पिंगला] स्वयं सिद्ध
देह की सभी नाडियो में सभी तत्व प्रवाहित होते है
सबसे पहले वायु तत्व और अंत में आकाश
सोकर उध्ते समय जो स्वर चल रहा हो उसी हाथ का मुख पर भाव स्पर्श पुण्य गति दायक है
उपभोग स्त्री गमन व्यापार में सूर्य स्वर लाभप्रद
भक्ति समर्पण में चन्द्र स्वर सिद्ध
स्थूल रूप में मनुष्य शरीर में-
सिर में आकाश तत्व
कंधो में अग्नि तत्व
नाभि के मूल में वायु तत्व
घुटनों में पृथ्वी तत्व
पाँव के अंतिम भाग में जल तत्व
स्वाद
आकाश तत्व -कडुवा
अग्नि तत्व -तीखा
वायु तत्व- कट्टा
जल तत्व- कसेला
पृथ्वी तत्व-मधुर
गृह व् तत्व
आकाश तत्व -गुरु
अग्नि तत्व -मंगल सूर्य
वायु तत्व- शनि
जल तत्व- सोम शुक्र
पृथ्वी तत्व-बुध
जो स्वर चलता हो उस और पैर रख कर यात्रा आरंभ करे यह शुभ प्रद होता है
शरीर व् तत्व
आकाश -नाना छिद्र
अग्नि -अभिसंताप
वायु - प्राण
जल - क्लेद
पृथ्वी-आधार
सभी से जुदा ब्रह्म आत्म
जीवन में युग
सतयुग- बाल्यावस्था
त्रेता -योवन
द्वापर - प्रोढ़ावस्था
कलियुग- वृदावस्था
युगांतर -पुनर्जन्म
लोक में तम जैसे जीवन में मोह
जीवन में ज्ञान जैसे ब्रह्माण्ड में ज्योति
व्यावहारिक तत्व
ब्रह्म तत्व
आत्म तत्व
प्रकृति तत्व
त्रिगुण स्वरुप
सत गुण
राज गुण
तम गुण
सत गुणी मन
दयावान करुनामय धर्मज्ञ सत्य निष्ठ धैर्य स्मृति भगवत ज्ञान
रजो गुणी मन
चंचल दुःख बाहुल्य अहंकार असत्य क्रोध काम लोभ मद भय अविश्वास
तमो गुणी मन
हिंसक अधर्म अज्ञान अकर्मशिलता पाखंड अविद्या भय आलस्य क्रूरता
तत्व गुण
आकाश- सत गुणी
वायु -रजो गुणी
अग्नि -सत व् रजो गुणी
जल -रजो गुणी
पृथ्वी -सत-रज-तमो गुणी
पञ्च वायू
प्राण -ह्रदय में
अपान -नाभि से निचे
सामान -नाभि मंडल
व्यान -समस्त शरीर
उदान -हृदय से मस्तिष्क
एकादस रूद्र
प्राण
अपान
सामान
उड़ान
व्यान
कुर्म
कृक्कल
नाग
देवदत्त
धनंजय
रूद्र
पृथ्वी तत्व के प्रतीक
हड्डी
मांस
खाल
नाडिया
रोम
जल तत्व के प्रतीक
वीर्य
रक्त
मज्जा
मूत्र व्
लार
तेज तत्व के प्रतीक
भूख
प्यास
नींद
क्रांति व्
आलस्य
वायु तत्व के प्रतीक
चलना
दोड़ना
ग्रंथि युक्त
सिकुंड़ना
फेलना
आकाश तत्व के प्रतीक
प्रेम
लज्जा
भय
द्वेष
मोह
Know Shiva to be eternal,
Shiva is beyond the truth beginning, sustenance and dissolution,
Shiva is the embodiment of all that which exist in the form of the universe,
There is no time that past, present, and future when he does not exist,
Rather Time that possesses past, future, and present exists in the truth of Shiva,
He is the cause of all causes but there is no cause for his existence,
Shiva is the source of all that exists in whatever forms but nothing is the source of him,
He creates everything but nothing creates him,
He is complete in himself, beyond the range of perspective truth,
Shiva is a mystic magician who has created everything out of nothing,
Shiva is a phenomenon in truth with evolution in facets of time and space, and all are in subjugation to this reality,
A realized soul humbly admits his limitation in truth unto perceptive skill of the supreme reality that none other than Shiva,
Men are humble enough to describe and understand the truth of supreme reality,
Though a part and party to this truth yet far distant from reality,
Cosmological descriptions may differ in many chapters to relate the truth of Shiva,
Spirituality could be a light to reach at self in context with the reality of the supreme personality,
The celestial cult could be a path to enjoin this privileged man entails with,
The cosmic manifestation is composite truth of a combination of spiritual feeling, eternal will that Sankalp, perfect thinking in truth with meditation, absolute knowledge, and faultless action in truth with sanctity,
There are fourteen prime regions that are most relevant to the Atman in truth with the journey for a hidden cause,
The planets in this universe are divided into fourteen multidimensional planetary levels starting from Satyaloka to the Patala, indeed, a tough chapter to perceive, even a most evolved soul finds self lack directions, the soul itself prefers to be on the planet earth in the embodied form to escape from that directionless reality,
Human is the most preferred truth for atman among species on the planet, plants, aquatic, insects, reptiles, birds, and beasts are common but no comparison for man, even gods pine for it,
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
Shiva controls all but none can control Shiva,
Shiva is a truth of eternity and a cult that support the truth in the light of truth alone,
Shiva is a beauty personification,
Shiva is a truth conjunct in beauty,
Saints and sages are the creation of Shiva that beckon to light to reach the truth of being self for Atman,
Saints and sages are the truth of conviction to relate the subject to reach that shore,
Shiva is bliss personified in truth with Truth,
All the four ages are in truth of Shiva,
All the four gateways to be embodied in sight of Lord Shiva, and they are not that all,
Process of the Atman get to indulge in truth with subtle body is through the truth of Shiva,
Al changeover of Soul exists in the light of the truth of Shiva,
Eight coverings of Maya to the life are from the truth of Shiva,
Macrocosm in microcosm and microcosm in the macrocosm is a truth from the invisible light from Shiva,
Science and the subjects of science are limited to science alone but the truth of this universe and the cult it belongs to,
Spirit and matter both relate to the truth of Shiva and maintain their roots in Shiva alone,
Shiva by nature is a limit of beauty beyond the perceptive skill of spirit,
The concept of beauty on the planet is very much limited to nature in truth with intelligence but the beauty of Shiva is a subject of submissive eternal truth,
Brute facts can never make it to the truth unto the beauty of Shiva,
Shiva is a reality far distant from conventional truth
There is no such specification to relate the eternity of the Shiva hence an emblem in the form of Lingam represents him,
It is a column of fire that different from the fire that manifests on the planet,
Scientific analyses of the truth of Shiva are more than futile,
Shiva is a comprehensive truth of religion in himself for faithful devotees,
Shiva is a divine cult in himself for devotees to meet with,
Devotees beseech Shiva for a meaningful journey as that of pilgrimage wherein they are not bereft of their eternal possessions,
Aspirants having faith in the truth may make it to the tune of spiritual wisdom, thereby, the Agni leads them to the path of gods to the world of pitars ruled by Yama, wherein lives in with joy eternally,
The presence of shiva is a conscious concern of self though a reality in truth with omnipresence, omnipotent, and omniscience yet without faith and submission man can never reach,
Faithful submission could be a truth to reach at,
Shiva is not merely a subject of faith yet faith is most relevant to shiva,
Vedas manifest from the breathing pitch of Shiva in a different language which is transcripted by the ancient sages in truth with time through the Sankalp of Shiva,
Vedas knows the most unto the truth of Shiva,
Shiva made to know him to a limit alone in the truth of the eternity of the sages and saints of that age,
Saints and sages scripted the truth in truth to their light,
Saints and sages revealed with loud that Shiva is an embodiment of compassion,
Shiva creates life in different forms in truth with the cult of the region, that visible and fat apart from the truth of vision,
Creation is just a facet of His Yoga,
On the planet alone millions of species with infinite means of communication,
The language of the beings on other planets is altogether different from the wavelength and pitch of earth,
The journey of the soul exists in varying forms and embodiments,
The existence of the soul is inevitable till a stage when it is lost in the truth of self to merge ego,
The quest for eternal peace is foremost for a conscious soul whatever the region in the universe,
Electromagnetic fields, gravity culture, and many ether fluxes are real challenges to spirit,
Embodied truth is a fair resort for the soul that a fair reason soul feared from conditions outside it,
This multidimensional space is an aspect of Shiva, only mystics may approach them through their eternal cord that routs in their eternity,
Soul ever remains surrounded by spaces in and out, way out to track those paths routs in through truth of eternity in self,
On this planet lowest species of life in truth with microbes, and their degradation at the threshold of liberation is the human cell,
In all species, sanctification ever remains active but the truth is superior in humans to match the truth of eternity soul bear with,
Know it as referral truth that the sun moon and fire are the three eyes of the shiva,
Shiva is the one who made the sunshine and the moonlight,
Indeed both are for a manifest and hidden cause,
Their referral transit creates lunar and solar measures to reach as day, fortnight, and Month,
Shiva is a providence that provides the provisions,
Shiva is a master that differs from the Satguru and preceptors in the sphere of life,
Teachings of Shiva are far above the horizon of theory and practice, indeed a truth of inherent cult spirit bear with,
Shiva is a supreme source of energy in whichever forms it may be available,
Shiva alone is the embodiment of heaven, earth, and space,
Shiva has created the universe self-supported but in fact, the whole creation is supported by the truth of eternity of shiva not visible through naked eyes,
Nothing in the universe happens by chance but every event has its roots in the truth of Shiva, the sole doer, and all others are just players,
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
The concept of life is different from being to being but the truth of life matches with the eternity of self and Shiva rules in hidden ways,
Positive vibrations and negative flux never leave beings, like day and night on the sphere of time, all are in the sway of this truth, and emotions flourish the beings mostly in life,
All creatures track a limited time span in a format but the format may differ a lot, one after the other,
Life of all beings mostly runs three tiers, one goes superficial which is more than an illusion in truth with Maya, the second goes along with the truth of emotions those that never find the surface to surf, and the third is the resort of inner quest spirit bear as hidden baggage mostly lies with spirit,
Life and destiny are the two facets of the same identity,
Both are threaded in cult with self and hope and faith are most concerned with men but men find self in the last row among the majority of beings, doubt and duality rule his inner truth,
Time is nothing but the truth of relativity that makes spirit realize self in truth with,
It is not that human alone is the truth of civilization but all beings maintain this truth in their cult man possessed the best to match in truth with the cosmic cult,
It is time that facilitates spirit to act as an energy charger, spirit charges the matter in varying forms for the social cult, celestial bodies may impart a lot to the spirit in the embodiment as human to charge and recharge in truth with self and the cause once the spirit follow the respective discipline,
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Inevitable is the death,
Man dies again and again but recognizes only the final changeover as death,
Definition of death mostly goes imperceptible for anyone except mystics,
Time lauds with time and again, that death is not a barrier to life,
It is a fear of life,
Mortal beings leave the body and regain it with time a new,
Rest assured nothing happens as per truth of will spirit bear with,
Will of the spirit in journey goes prefixed in destiny,
The body and the soul are knotted together with a keyhole at the eye center to untie the knot,
Soul possesses its own light as that of stars but remains mostly influenced by planets that borrow the light from other sources,
When the light of the soul becomes obscured by the veils of the mind, beings act as worldly,
Worldly men are more prone to be deceived by conditions and fellow beings,
Happiness in life is the biggest mirage, which disappears as reached,
Frustration often visits the spirit in many forms,
To regain the light of self spirit has to align self in cult with celestial culture, and man alone can make it,
Constantly mastering the mind with the truth of spiritual reality man helps man to regain self in truth with the light, and the grace of gracious Shiva truly matters here,
Heaven is a region and a truth both maintain the same flux for life,
Abode in heaven is given to a soul on the basis of its meritorious deeds in truth with human birth,
'Two options ever remain available to man_
Either he should enjoin the spiritual Yajna in truth with cult
Or seek shelter in Shiva that needs aspiration from the core of self
आत्मा ध्वनि तरंगो से प्रभावित होती है जो नियम बद्द तरीके से आत्म कोष में पहुचती है यह कर्म कोष से आत्म कोष का भेद सहज नहीं-आत्मा चित के माद्यम से मन को प्रभावित कऱती है मन इन्द्रियों को प्रभावित करता है
चित की गरिमा
धारणा -ध्यान- समाधी
चित को किसी विशेष धेय से बाघऩा धारणा है
चित को किसी के निमित पुन पुन एक करना ध्यान है
चित को श्तूल गति प्रदान कर स्वयं अतमा के साथ लीं हो जाना समाधी है
मुक्ति पथ
सृष्टी के पञ्च तत्व
पञ्च तत्व रचित माया के भेद
भेद का ज्ञान
ज्ञान में भक्ति का समावेश और
इस युक्ति का शिव चरणों में समर्पण ही मुक्ति पथ है
सत रज तम से बना शरीर पञ्च भूत व् इन्द्रियों के दर्श हेतु परमात्मा की सुन्दर रचना है यह मनुष्य जीवन भोग व् मोक्ष का कारन कारनाये है
यह दृश्य जीव हेतु ही है
सत प्रद जीव मोक्ष पाते है
रज प्रद पुनर्जन्म
तम प्रद अन्यथा स्थिति को प्राप्त होते है
सत प्रद हेतु सत्य का बोध परम आवश्यक
सत्य के बोध हेतु तत्वज्ञ का ज्ञान आवश्यक है
तत्वज्ञ से ही जीव आत्मा सत्य पर पहुचता है
आत्म सत्य पाने पर ही जीव निज स्वरुप
का दर्शन पाता है
आत्मा का मन संयोग
मन का इन्द्रियों से योग
इन्द्रियों का पञ्च भूतो से योग
येही बंधन है
ज्ञान भक्ति व् समर्पण से जीव सत्य को प्राप्त होता है
अन्यथा संसारी कर्म कर जीव रज या तम गति को प्राप्त होता है
इन्द्रियों का सदुपयोग जीव को सत्य की और ले जता है
इन्द्रियों का दुरुपयोग जीव को तामस की और ले जाता है
सच्चा ज्ञान सर्वोपरी पर भक्ति के बिना अधुरा
समर्पण के बिना भक्ति अधूरी है
बुद्धि अन्तः कारन को प्रभावित करती है
मन बुद्धि को प्रभावित करता है
अहंकार मन को प्रभावित करता है
अहंकार ही जीव संज्ञा का हेतु है
अहंकार मुक्त जीव ब्रह्म मार्ग पर मुक्ति का पात्र
सदाचार के मार्ग पर तमो गुण दूर होते है
आत्म दर्शन से रजो गुण से मुक्ति संभव है
समर्पण से सत्य प्रकाशित होता है
आत्म तत्व के ज्ञान से जीव ब्रह्म विज्ञान को प्राप्त होता है ब्रह्म विज्ञान से जीव परम सत्य का साक्षात्कार करता है सत्य के साक्षात्कार से जीव माया के बंधन से मुक्त होता है सत्य एक प्रकाश है जो माया रुपी तामस को दूर करता है
सत्य अनंत है
सत्य की सत्ता भी अनंत है
सत्य का स्वरुप भी अनंत है
सत्य दिव्य है
सत्य पंचभूत व् उनके गुणों की सत्ता से भिन्न है पर उनका संयोग सत्य को पाने में सहायक हो सकता है
अहंकार सत्य के मार्ग में सबसे बड़ा बाधक और समर्पण प्रतीकात्मक सहायक पृथ्वी पर माया का वाचास्व है माया के आधीन सभी जीव जंतु पर सचेत हो कर कर्म करने से जीव माया के अन्धकार से सहज ही पार हो सकता है
तत्व ज्ञान हो जाने पर स्वत ही वैराग्य पथ प्रकाशित हो जाता है योग शिखोप्निषद में ब्रह्मा को महेश्वर यह रहस्य प्रगट करते है परम तत्व के ज्ञान से ही मन स्थिर हो सकता है मन की स्थिरता ही मुक्ति का साधन बनती है मन को जितने का साधन है तत्व ज्ञान
परमात्मा न चक्षुओ का विषय है ना मन का पर तत्व ज्ञान के साधन से मन स्थिर होने पर जो गति प्राप्त होती है वहा परमात्मा अपने मूल स्वूरूप में प्रगट हो कर जीव को वह स्थिति देता है जिससे जीव उसका अवलोकन व् अनुभव कर गोरवान्वित होता है यह स्थिति परमानन्द की अनुभूति के सामान है
माया मरी न मन मरा
मर मर गए शरीर
माया तृष्णा न मिटे
कह गए संत फ़कीर
जा स्वामी ने तन दियो
वाको भी कर ख्याल
न जाने केहू सांस में
ले जाए यम प्राण
जीव स्थति
जाग्रत-परिपूर्ण चेतना
स्वप्न -चेतना पर भोतिकता से भिन्न [नींद ]
सुषुप्ति -चेतना पर आत्मा के सामीप्य शांति की आगोश में [गहरी नींद]
रथ
शरीर रथ है
आत्मा रथी
मन सारथि
इन्द्रिय अश्व है
वृतिया रासे
पथ_
सत्य व् असत्य भी
धर्म व् अधर्म भी
मन अम्रत भी है और विष भी
मन के माध्यम से ही आत्मा भोगो का अनुभव करती है
मन के माध्यम से ही आत्मा ब्रह्म को प्राप्त होती है
यात्रा
ब्रह्म से बिछड़ने के बाद दुःख संताप व् पीड़ा ही जीव का भाग्य बन जता है वह परिवर्तन के निमित हो जाता है गति उसे तरसा देती है वह शांति चाहता है स्थिरता चाहता है पर अहंकार के वेग में बहे चला जाता है
आकाश से वायु
वायु से मेघ
मेघ से जल
जल शस्य
शस्य से शुक्र
शुक्र से गर्भ
गर्भ से योनी
योनी के भोग
भोग से कर्म
कर्म से बंधन
और पुन वही चक्र व्यूह, पर मनुष्य योनी वह पड़ाव है जहा पहुच कर जीव इस चक्र व्यूह का भेदन कर पुन ब्रह्मा को पा सकता है जहा स्थिरता शांति व् परमानन्द है
विशुद्ध ज्ञान ही वह अमृत है जो शिव प्राप्ति का परम साधन है केवलं का प्राप्ति कारक मात्र विशुद्ध ज्ञान और परिपूर्ण समर्पण है
Refuge in Shiva is truth to sail safely,
Faith in Shiva is the best preposition for self to rely upon,
The secret of fourteen realms update within self with the refuge in Shiva in faith with,
Negative power prevails in all conditions and faith in the self alone is the shield to safeguard,
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्